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भारतीय न्याय संहिता की धारा 125 मे सजा और जमानत

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भारतीय न्याय संहिता की धारा 125 मे सजा और जमानत किसी व्यक्ति के जीवन को खतरे में लाने वाले आपराधिक कार्यों के लिए पहले भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 336 व 338 के तहत सजा की कार्यवाही की जाती थी। जिसे BNS के लागू किए जाने के बाद से भारतीय न्याय संहिता की धारा 125 से बदल दिया गया है। इसलिए कानूनी छात्रों, पुलिस अधिकारी व देश के सभी नागरिकों के लिए इस कानून के बारे में जानना बहुत ही जरुरी है। बीएनएस की धारा 125 क्या है  भारतीय न्याय संहिता  की धारा 125 में किसी व्यक्ति की जान या व्यक्तिगत सुरक्षा को जानबूझकर खतरे में डालने वाले कार्यों को अपराध माना जाता है। यह धारा उन सभी मामलों को कवर करती है, जहां किसी व्यक्ति के द्वारा किए गए कार्यों द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को शारीरिक या मानसिक रूप से नुकसान पहुंचने का खतरा होता है। इसका मतलब है कि यदि कोई व्यक्ति ऐसा कोई भी कार्य करता है जिससे किसी अन्य व्यक्ति की जान को या किसी भी अन्य तरीके से शारीरिक या मानसिक नुकसान होता है। तो ऐसे व्यक्ति पर BNS Section 125 के तहत मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही की जा सकती है। भारतीय न्याय संहिता की धारा 125 के अपरा

बीएनएस धारा 102 क्या है

  बीएनएस धारा 102 क्या है जिस व्यक्ति की मृत्यु का इरादा था उसके अलावा किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु कारित करके गैर इरादतन हत्या यदि कोई व्यक्ति, ऐसा कुछ भी करके, जिसका वह इरादा रखता है या जानता है कि मृत्यु कारित होने की संभावना है, किसी ऐसे व्यक्ति की मृत्यु कारित करके गैर इरादतन हत्या करता है, जिसकी मृत्यु न तो वह चाहता है और न ही जानता है कि मौत कारित होने की संभावना है, तो गैर इरादतन हत्या की जाती है। अपराधी द्वारा इस प्रकार का वर्णन किया गया है कि यह तब होता जब उसने उस व्यक्ति की मृत्यु कारित की होती जिसकी मृत्यु वह चाहता था या स्वयं जानता था कि वह मृत्यु कारित कर सकता है।

भारतीय न्याय संहिता

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कौन-कौन से हैं नए कानून भारत के क्रिमिनल लॉ को शामिल किए जाने वाले तीन अहम दस्तावेजों- भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय रिवायतों का कम्युनिस्टों में साफ हो गया। अब इन त्रिस्तरीय बिलों की जांच के लिए संसदीय समिति के पास भेज दिया गया है। इसके बाद संज्ञाहरण और बाद में रोमानिया में प्रवेश द्वार। यदि यह तीन वैज्ञानिक कानून की शक्तियां ले जाता है तो ये बिल भारतीय दंड संहिता (एपीसी), आपराधिक अभियोजक और भारतीय न्यायिक अधिनियम की संहिता की जगह ले लेगा। नये कानून की धाराओं में बदलाव? आईपीसी में धारा 511 लागू हैं. इसकी जगह भारतीय पौराणिक कथाओं में 356 धाराएं हैं। पुराने कानून से नये कानून में 175 धाराएं बदली गयीं। भारतीय ऐतिहासिक संहिता में 8 नई धाराएं, 22 धाराएं हटाई गई रचनाएं।  इसी तरह सीआरपीसी में 533 धाराएं रेह मोशन और 160 धाराएं बदली गति। नए कानून में 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 9 खत्म हो गई हैं। आपराधिक नए क़ानूनों में 6 बड़े और महत्वपूर्ण बदलाव क्या हैं? 1. मॉब लिंचिंग और आपत्तिजनक अपराध के लिए सजा दी गई वर्तमान में जो कानून है उसमें मॉब लिंचिंग और सांप्रदायिक अप

मोटर विहिकल् एक्ट

 एमपी में मोटर व्हीकल एक्ट जुर्माने की बढ़ी हुई राशि लागू अब केंद्र के समान जुर्माना राशि एमपी में भी होगी लागू जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका की सुनवाई के दौरान अधिसूचना की पेश सबसे अधिक जुर्माना एंबुलेंस और फायर ब्रिगेड सहित अन्य आपातकालीन वाहन के रास्ता रोकने पर देना होगा जुर्माना ये है नई जुर्माना राशि बिना हेलमेट 300 बिना सीट बेल्ट 500 बिना इंश्योरेंस 2000 बिना परमिट 10000 बिना लाइसेंस 1000 हॉर्न का शोरगुल एक से तीन हजार वायु प्रदूषण 10000 ओवर स्पीड एक से तीन हजार गाड़ी चलाते समय फोन पर बात करना 3000 आपातकालीन वाहन का रास्ता रोकना 10000

IPC 1860 भारतीय दंड संहिता की प्रमुख धाराएं

  भारतीय दंड संहिता की प्रमुख धाराएं आईपीसी धारा 1 - संहिता का नाम और उसके प्रवर्तन का विस्तार आईपीसी धारा 2 - भारत के भीतर किए गए अपराधों का दण्ड आईपीसी धारा 3 - भारत से परे किए गए किन्तु उसके भीतर विधि के अनुसार विचारणीय अफराधों का दण्ड आईपीसी धारा 4 - राज्यक्षेत्रातीत अपराधों पर संहिता का विस्तार आईपीसी धारा 5 - कुछ विधियों पर इस अधिनियम द्वारा प्रभाव न डाला जाना आईपीसी धारा 6 - संहिता में की परिभाषाओं का अपवादों के अध्यधीन समझा जाना आईपीसी धारा 7 - एक बार स्पष्टीकॄत पद का भाव आईपीसी धारा 8 - लिंग आईपीसी धारा 9 - वचन आईपीसी धारा 10 - पुरुष। स्त्री आईपीसी धारा 11 - व्यक्ति आईपीसी धारा 12 - लोक आईपीसी धारा 13 - क्वीन की परिभाषा आईपीसी धारा 14 - सरकार का सेवक आईपीसी धारा 15 - ब्रिटिश इण्डिया की परिभाषा आईपीसी धारा 16 - गवर्नमेंट आफ इण्डिया की परिभाषा आईपीसी धारा 17 - सरकार आईपीसी धारा 18 - भारत आईपीसी धारा 19 - न्यायाधीश आईपीसी धारा 20 - न्यायालय आईपीसी धारा 21 - लोक सेवक आईपीसी धारा 22 - जंगम सम्पत्ति आईपीसी धारा 23 - सदोष अभिलाभ आईपीसी धारा 24 - बेईमानी से आईपीसी धारा 25 - कपटपूर्वक

रेलवे के नियम

  ट्रेन में किस वक्त TTE किसी भी हाल में चेक नहीं कर सकता टिकट, जानें क्या है नियम ट्रेन में सफर करते वक्त बगैर मर्जी के कोई आपको डिस्टर्ब नहीं कर सकता. रात 10 बजे के बाद TTE भी आपको जगा कर टिकट चेक नहीं कर सकता. ये रेलवे बोर्ड का नियम है. आइए इसके बारे में विस्तार से बताते है         भारत में ज्यादातर लोग ट्रेन में सफर करते हैं. भारतीय रेल नेटवर्क दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है. ट्रेन में सफर करते वक्त हर कोई चाहता है कि उसकी यात्रा आरामदायक हो. लेकिन ट्रेन में होने वाले शोर, टिकट चेकिंग, सीट को लेकर यात्रियों की आवाजाही से अक्सर लोग परेशान होते हैं. क्या आप जानते हैं कि आपकी बगैर मर्जी के कोई आपको डिस्टर्ब नहीं कर सकता. रेलवे के नियमों  के मुताबिक रेलवे का टिकट एग्जामिनर (TTE) भी सोते वक्त आपकी टिकट चेक नहीं कर सकता. आइए आपको रेलवे के इन नियमों के बारे में बताते हैं. रात 10 बजे के बाद TTE नहीं कर सकता टिकट चेक आपकी यात्रा के दौरान ट्रैवल टिकट एग्जामिनर (TTE) आपसे टिकट लेने आता है. कई बार वो देर रात में आपको जागकर टिकट या आईडी दिखाने के लिए कहता है. लेकिन, आपको बता दें, रा

दहेज निषेध अधिनियम 1961

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    दहेज़ निषेध अधिनियम https://youtu.be/gil5VmRUmZk दहेज़ निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 2  जिसमें दहेज़ को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है:- “दहेज़” का अर्थ है प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर दी गयी कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति सुरक्षा या उसे देने की सहमति”:- विवाह के एक पक्ष के द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष को; या विवाह के किसी पक्ष के अभिभावकों द्वारा; या विवाह के किसी पक्ष के किसी व्यक्ति के द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को; शादी के वक्त, या उससे पहले या उसके बाद कभी भी जो कि उपरोक्त पक्षों से संबंधित हो जिसमें मेहर की रकम सम्मिलित नहीं की जाती, अगर व्यक्ति पर मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) लागू होता हो। इस प्रकार दहेज़ से संबंधित तीन स्थितियां हैं- विवाह से पूर्व; विवाह के अवसर पर; विवाह के बाद; दहेज़ लेने और देने या दहेज लेने और देने के लिए उकसाने पर या तो 6 महीने का अधिकतम कारावास है या 5000 रूपये तक का जुर्माना अदा करना पड़ता है। वधु के माता-पिता या अभिभावकों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दहेज़ की मांग करने पर भी यही सजा दी जाती है। बाद में संशोधन अधिनियम के द्वारा इन सजाओं को भी बढाकर न्यूनतम 6