दहेज निषेध अधिनियम 1961

  



दहेज़ निषेध अधिनियम













https://youtu.be/gil5VmRUmZk

दहेज़ निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 2 

जिसमें दहेज़ को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है:-

“दहेज़” का अर्थ है प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर दी गयी कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति सुरक्षा या उसे देने की सहमति”:-

  • विवाह के एक पक्ष के द्वारा विवाह के दूसरे पक्ष को; या
  • विवाह के किसी पक्ष के अभिभावकों द्वारा; या
  • विवाह के किसी पक्ष के किसी व्यक्ति के द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को;
  • शादी के वक्त, या उससे पहले या उसके बाद कभी भी जो कि उपरोक्त पक्षों से संबंधित हो जिसमें मेहर की रकम सम्मिलित नहीं की जाती, अगर व्यक्ति पर मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरियत) लागू होता हो।

इस प्रकार दहेज़ से संबंधित तीन स्थितियां हैं-

  1. विवाह से पूर्व;
  2. विवाह के अवसर पर;
  3. विवाह के बाद;

दहेज़ लेने और देने या दहेज लेने और देने के लिए उकसाने पर या तो 6 महीने का अधिकतम कारावास है या 5000 रूपये तक का जुर्माना अदा करना पड़ता है। वधु के माता-पिता या अभिभावकों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दहेज़ की मांग करने पर भी यही सजा दी जाती है। बाद में संशोधन अधिनियम के द्वारा इन सजाओं को भी बढाकर न्यूनतम 6 महीने और अधिकतम दस साल की कैद की सजा तय कर दी गयी है। वहीँ जुर्माने की रकम को बढ़ाकर 10,000 रूपये या ली गयी, दी गयी या मांगी गयी दहेज की रकम, दोनों में से जो भी अधिक हो, के बराबर कर दिया गया है। हालाँकि अदालत ने न्यूनतम सजा को कम करने का फैसला किया है लेकिन ऐसा करने के लिए अदालत को जरूरी और विशेष कारणों की आवश्यकता होती है (दहेज़ निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 और 4)।

दंडनीय है-

  • दहेज़ देना
  • दहेज़ लेना
  • दहेज़ लेने और देने के लिए उकसाना
  • वधु के माता-पिता या अभिभावकों से सीधे या परोक्ष तौर पर दहेज़ की मांग

(दहेज़ निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 और 4)

दहेज़ के लेन और देन के सम्बन्ध में सारे समझौते बेकार हैं और इन्हें कोई भी विधि अदालत लागू नहीं कर सकती है। वधु के अलावा अगर किसी व्यक्ति को दहेज़ मिलता है तो उसे वधु के खाते में तीन महीने के अन्दर रसीद समेत जमा करना होगा। अगर वधु नाबालिग है तो उसके बालिग़ होने के तीन महीने के अन्दर संपत्ति को हस्तांतरित करना होगा। अगर वधु की इस प्रकार के हस्तांतरण से पहले मृत्यु हो जाती है तो उसके उत्तराधिकारियों को उक्त समान शर्तों के तहत दहेज़ को हस्तांतरित करना होगा। ऐसा नहीं कर पाने की दशा में दहेज़ अधिनियम के तहत यह दंडनीय अपराध होगा और किसी भी सूरत में अदालत को नियत न्यूनतम सजा से कम दंड देने का अधिकार नहीं होगा।

दहेज़ के मुक़दमे पर निर्णय लेने का क्षेत्राधिकार मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को ही है। दहेज़ के अपराध का संज्ञान या तो मजिस्ट्रेट खुद ले सकता है या वह पुलिस रिपोर्ट में दर्ज तथ्यों जिनसे अपराध का पता चलता है, के आधार पर या ऐसे व्यक्ति के माता-पिता या अन्य रिश्तेदार द्वारा दर्ज शिकायत के आधार पर या मान्यताप्राप्त कल्याणकारी संस्थान या संगठन के द्वारा दर्ज कराई गयी शिकायत के आधार पर संज्ञान ले सकता है। आमतौर पर लड़कीवाले शिकायत दर्ज करने में हिचकते हैं, इसलिए कल्याणकारी संस्थाओं द्वारा दर्ज शिकायतों को मान्यता मिलने से इस अधिनियम की संभावनाएं व्यापक हुई हैं।


Please Select Embedded Mode To Show The Comment System.*

और नया पुराने