कोर्ट में गीता पर हाथ रखकर कसम क्यों खिलाते थे, रामायण पर क्यों नहीं है |

 


कोर्ट में गीता पर हाथ रखकर कसम क्यों खिलाते थे, रामायण पर क्यों नहीं है |

भगवान श्रीराम ने जीवन में कभी झूठ का सहारा नहीं लिया। उनका जीवन एक आदर्श जीवन था जबकि भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध में विजय के लिए ' पूर्व से स्थापित आदर्श' का अनिवार्य पालन नहीं किया बल्कि विजय की प्राप्ति के लिए पूर्व निर्धारित आदर्शों का उल्लंघन किया। फिर क्या कारण है कि कोर्ट में गीता पर हाथ रखकर कसम खिलाते थे रामायण पर नहीं।

भारत में गीता पर हाथ रखकर कसम खाने की परंपरा कब शुरू हुई

        प्रख्यात पत्रकार श्री हेमंत सिंह की एक स्टडी के अनुसार भारत में मुगल शासकों ने धार्मिक किताबों पर हाथ रखकर शपथ लेने की प्रथा शुरू की थी। क्योंकि मुगल शासक अपने लाभ के लिए झूठ बोलते थे, छल-कपट करते थे, इसलिए भारत के नागरिकों के वचन पर विश्वास नहीं करते थे लेकिन वह इस बात पर विश्वास करते थे कि भारत के नागरिक अपने धर्म ग्रंथ पर हाथ रखकर यदि शपथ उठा ले तो फिर झूठ नहीं बोलते। शायद उन्हें भारत में सत्य वचन के लिए 'गंगाजल' परंपरा का ज्ञान था। 

कोर्ट में धार्मिक पुस्तक पर हाथ रख कर शपथ लेने का नियम कब बना

मुगलों और समकक्ष शासनकाल तक गीता पर हाथ रखकर शपथ उठाने की प्रक्रिया एक दरबारी प्रथा थी इसके लिए कोई कानून नहीं था लेकिन अंग्रेजों ने इसे कानूनी जामा पहना दिया और इंडियन ओथ्स एक्ट, 1873 पास किया और सभी अदालतों में लागू कर दिया गया था। इस एक्ट के तहत हिंदू संप्रदाय के लोग गीता पर और मुस्लिम संप्रदाय के लोग कुरान पर हाथ रखकर कसम खाते थे। ईसाइयों के लिए बाइबल सुनिश्चित की गई थी।

क्या आजादी के बाद भी कोर्ट में गीता/ कुरान/ बाइबल पर हाथ रखकर गवाही दी जाती थी

अदालत में कसम खाने की यह प्रथा स्वतंत्र भारत में 1957 तक कुछ शाही युग की अदालतों, जैसे बॉम्बे हाईकोर्ट में नॉन हिन्दू और नॉन मुस्लिम्स के लिए उनकी पवित्र किताब पर हाथ रखकर कसम खाने की प्रथा चालू थी।

भारत में धर्म ग्रंथ पर हाथ रखकर कसम खाने का कानून कब समाप्त हुआ

भारत में किताब पर हाथ रखकर कसम खाने की यह प्रथा 1969 में समाप्त हुई। जब लॉ कमीशन ने अपनी 28वीं रिपोर्ट सौंपी तो देश में भारतीय ओथ अधिनियम, 1873 में सुधार का सुझाव दिया गया और इसके स्थान पर 'ओथ्स एक्ट, 1969' पास किया गया। इस प्रकार पूरे देश में एक समान शपथ कानून लागू कर दिया गया है। 

क्या भारत की अदालतों में आज भी ईश्वर की शपथ लेकर बयान दिए जाते हैं

इस कानून के पास होने से भारत की अदालतों में शपथ लेने की प्रथा के स्वरुप में बदलाव किया गया है और अब शपथ एक सिर्फ एक सर्वशक्तिमान भगवान के नाम पर दिलाई जाती है। अर्थात अब शपथ को सेक्युलर बना दिया गया है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, पारसी और इसाई के लिए अब अलग-अलग किताबों और शपथों को बंद कर दिया गया है। अब सभी के लिए इस प्रकार की शपथ है;

"मैं ईश्वर के नाम पर कसम खाता हूं / ईमानदारी से पुष्टि करता हूं कि जो मैं कहूंगा वह सत्य, संपूर्ण सत्य और सत्य के अलावा कुछ भी नहीं कहूँगा।"

यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि नए ओथ एक्ट,1969' में यह भी प्रावधान है कि यदि गवाह, 12 साल से कम उम्र का है तो उसे किसी प्रकार की शपथ नहीं लेनी होगी क्योंकि ऐसा माना जाता है कि बच्चे स्वयं भगवान के रूप होते हैं।

कोर्ट में गवाही से पहले शपथ का क्या औचित्य है, यदि झूठ बोल दिया तो क्या होगा

वर्तमान में कोर्ट में दो प्रकार की शपथ ली जाती है। पहला जज के सामने मौखिक रूप से और दूसरा शपथ पत्र पेश करके। अगर कोई व्यक्ति शपथ लेने के बाद झूठ बोलता है तो इंडियन पैनल कोड के सेक्शन 193 के तहत यह कानून अपराध है और झूठ बोलने वाले को 7 साल की सजा दी जाएगी। इतना ही नहीं इस सेक्शन में यह प्रावधान है कि जो कोई भी गवाह किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी मामले में झूठा प्रमाण या साक्ष्य देगा य किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी प्रक्रम में उपयोग किये जाने हेतू झूठा साक्ष्य बनाएगा तो उसे 7 वर्ष के कारावास और जुर्माने से भी दण्डित किया जायेगा। यह अपराध तभी दर्ज किया जा सकता है जब गवाह ने सत्य वचन की शपथ ली हो। यदि वह शपथ नहीं देगा तो शपथ भंग का अपराधी भी नहीं कहलाएगा। 

गीता की शपथ क्यों, रामायण की क्यों नहीं 

अब आते हैं मूल प्रश्न पर। कोर्ट में गीता की शपथ क्यों नहीं जाती है जबकि रामायण ज्यादा लोकप्रिय धार्मिक पुस्तकें। इसके पीछे लॉजिक यह है कि रामायण भगवान श्री राम के जीवन का वर्णन है। रामायण से लोग आदर्श जीवन का मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं। रामायण लोगों को आदर्श जीवन के लिए प्रेरित करती है परंतु 'गीता' हिंदुओं का एक ऐसा धर्म ग्रंथ है जिसमें जीवन के लिए मार्गदर्शन उपलब्ध कराया गया है। यह केवल महाभारत युद्ध का विवरण नहीं है बल्कि सत्य की स्थापना के लिए मनुष्य को किस प्रकार के आचरण करना चाहिए उसका विस्तार से विवरण है। हिंदू धर्म में गीता, इस्लाम में कुरान और क्रिश्चियन में बाइबल समान रूप से मानव जीवन को मार्गदर्शन करने वाले धर्म ग्रंथ माने गए हैं।

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