section 95,96,97,98



  धारा 95--  तुच्छ अपहानि कारित करने वाला कार्यः-  

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 95 कहती है कि किसी व्यक्ति को कोई व्यक्ति तुच्छ  अपहानि कारित करता है  तो मामूली समझ और स्वभाव वाला कोई व्यक्ति उसकी शिकायत नही करेगा। तो वह अपराध की श्रेणी मे नही आता है।

धारा 96 -- प्राइवेट प्रतिरक्षा मे की गई बातें--  

     भारतीय दंण्ड संहिता की धारा 96 कहती है कि प्राइवेट प्रतिरक्षा मे किया गया कोई कार्य अपराध नही है।

धारा 97 -- शरीर तथा सम्मति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार--  

     भारतीय दंण्ड संहिता की धारा 97 कहती है कि हर व्यक्ति को वह अधिकार प्राप्त है जो उसकी व अन्य की प्राइवेट प्रतिरक्षा मे कार्य करे।
    1.    मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले किसी अपराध के विरूद्ध अपने शरीर और किसी अन्य व्यक्ति के शरीर  की प्रतिरक्षा करे
    2.    कोई व्यक्ति  चोरी, लूट, रिष्टि, या आपराधिक अतिचार  या चोरी लूट, रिष्टि, आपराधिक अतिचार करने का प्रयत्न करता है तो दूसरा व्यक्ति अपनी या अन्य व्यक्ति की चाहे जंगल चाहे स्थावर सम्पत्ति की प्रतिरक्षा करेगा तो वह कोई अपराध नही करता।

धारा 98--विकृत चित्त, बालकपन, मत्तता  भ्रम युक्त  व्यक्ति के विरूद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार-  

  भारतीय दंण्ड संहिता की धारा 98 कहती है कि कोई व्यक्ति जिस पर विकृतचित्त  व्यक्ति , बालक, नशे मे मस्त या भ्रम से ग्रस्त कोई व्यक्ति हमला करता है तो उक्त व्यक्ति को अपनी प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार है जो एक सामान्य चेतनावान व्यक्ति के विरूद्ध होगा।

    उदाहरणः- 1.    एक व्यक्ति ए पागलपन के असर मे  दूसरे व्यक्ति बी को जान से मारने का प्रयत्न करता है । ए किसी अपराध का दोषी नही है। किन्तु बी कोई प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार है, जो वह ए के स्वस्थ चित्त होने की दशा मे रखता।
            2.        एक व्यक्ति ए रात्रि मे एक ऐसे गृह मे प्रवेश करता ाहै जिसमे प्रवेश करने के लिये वह वैध रूप से हकदार है। बी  सद्भावपूर्वक ए को गृहभेदक  समझकर बी पर आक्रमण करता है यहाॅ बी इस भ्रम के अधीन ए पर आक्रमण करके कोइ्र अपराध नही करता। किन्तु ए बी को विरूद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है जो वह तब रखता जब बी उस भ्रम के अधीन कार्य न करता।
   

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